Details, Fiction and baglamukhi shabar mantra
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अम्बां पीताम्बराढ्यामरुण-कुसुम-गन्धानुलेपां त्रि-नेत्रां ।
यदि आपका कोई अदालती मामला लंबित है, तो इस मंत्र जप से आपको अपनी समस्या का त्वरित समाधान प्राप्त हो सकेगा।
चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन-संस्थिताम् । त्रिशूलं पान-पात्रं च, गदां जिह्वां च विभ्रतीम् ।।
श्रीब्रह्मा द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखम पदम् स्तम्भय।
देवी बगला, जिन्हें वल्गामुखी के नाम से भी जाना जाता है, को बगलामुखी मंत्र से सम्मानित किया जाता है। "बगला" एक कोर्ड (तंतु) को संदर्भित करता है जिसे जीभ की गति को नियंत्रित करने के लिए मुंह में रखा जाता है, जबकि मुखी, चेहरे के लिए बोला गया है। बगलामुखी मंत्र को एक क्रोधित देवी के रूप में दिखाया गया है, जो अपने दाहिने हाथ से गदा चलाती है, एक राक्षस को मारती है और उसकी जीभ को अपने बाएं हाथ से बाहर निकालती है। उनके मंत्र का जाप करने से साहस और आधिकारिक व्यक्तित्व का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पीताम्बर-धरां देवीं द्वि-सहस्त्र-भुजान्विताम । सान्द्र-जिव्हां गदा चास्त्रं, धारयन्तीं शिवां भजे । ।
ऋषि श्रीनारद द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा, सिंहासन पीला, सिंहासन पीले ऊपर कौन बैसे? सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे। बगलामुखी के कौन संगी, कौन साथी? कच्ची बच्ची काक कुतिआ स्वान चिड़िया। ॐ बगला बाला हाथ मुदगर मार, शत्रु-हृदय पर स्वार, तिसकी जिह्ना खिच्चै। बगलामुखी मरणी-करणी, उच्चाटन धरणी , अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी। ॐ बगलामुखीरमे ब्रह्माणी भण्डे, चन्द्रसूर फिरे खण्डे-खण्डे, बाला बगलामुखी नमो नमस्कार।
सुधाब्धौ रत्न-पर्यङ्के, मूले कल्प-तरोस्तथा ।
एक जप माला लें और इसका उपयोग आपके द्वारा कहे जा रहे मंत्रों पर ध्यान देने के लिए click here करें। अपने मन्त्र का जप जितनी चाहे, उतनी मालाओं में करें।
अर्थात् साधक गम्भीराकृति, मद से उन्मत्त, तपाए हुए सोने के समान रङ्गवाली, पीताम्बर धारण किए वर्तुलाकार परस्पर मिले हुए पीन स्तनोंवाली, सुवर्ण-कुण्डलों से मण्डित, पीत-शशि-कला-सुशोभित, मस्तका भगवती पीताम्बरा का ध्यान करे, जिनके दाहिने दोनों हाथों में मुद्र्गर और पाश सुशोभित हो रहे हैं तथा वाम करों में वैरि-जिह्ना और वज्र विराज रहे हैं तथा जो पीले रङ्ग के वस्त्राभूषणों से सुशोभित होकर सुवर्ण-सिंहासन में कमलासन पर विराजमान हैं।
गदाऽभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्वि-भुजां नमामि ।।२